भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Disaster)
02-03 दिसम्बर 1984 के मध्य रात,भोपाल शहर के लिये एक भयानक रात थी जहाँ लाखों लोगों की मौत हुई थी।
यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) नामक एक कीटनाशक कारखाने की इकाई से निकले रसायन, "मिथाइल आइसोसायनेट" (M. I. C.) ने शहर को एक विशाल गैस चेम्बर में तब्दील कर दिया था।लोग सड़कों पर उलटी करते हुए भाग रहे थे और मर रहे थे।
यह भारत की पहली (अब तक की एकमात्र) प्रमुख औद्योगिक दुर्घटना थी।सरकार अभी तक बाढ़, चक्रवात और भूकम्प जैसी घटनाओं से ही निपटती आई थी,इसलिये ऐसी स्थिति में क्या करना है इस विषय में किसी को कोई अंदाजा नही था।अमेरिका स्थित बहुराष्ट्रीय कम्पनी "यूनियन कार्बाइड कारपोरेशन" (U C C) के स्वामित्व वाली सहायक कम्पनी "UCIL" जिसने यह संयंत्र स्थापित किया था, ने इससे अधिक मानवीय त्रासदी से निपटने में बहुत कम सहायता की थी।जिसका अभी तक कोई निष्कर्ष नही निकला है।इसका कारण यह नही है कि उस दुर्भाग्यपूर्ण रात को क्या हुआ था बल्कि उस दुर्घटना को लेकर हमारी क्या प्रतिक्रिया थी?
भोपाल में दो त्रासदियाँ हुई -----
एक तो घटना उस समय हुई और दूसरी उसके वर्षों बाद सामने आई।यह सबकुछ नियंत्रित एवं व्यवस्थित हो सकता था यदि सरकार को इस रसायन और इसके उपचार के विषय में थोड़ी सी भी जानकारी होती।
रिसाव (Leakage) :
नवम्बर 1984 में अधिकांश सुरक्षा सिस्टम कार्य नही कर रहे थे तथा कई वाल्व और लाइने खराब हालत में थी।इसके अलावा कई वेन्ट गैस स्क्रबर भाप वायलर भी पुराने हो चुके थे।
एक अन्य मुद्दा यह भी था कि टैंक संख्या 610 में भरी गई 42 टन M.I.C (मिथाइल आइसो सायनेट) सुरक्षा मानकों से काफी अधिक होने के कारण 02-03 दिसम्बर 1984 की रात एक पाइप से तकनीकी खराबी के कारण जल प्रवेश कर गया और इसे टैंक E610,जिसमे 42 टन मिथाइल आइसो सायनेट भरा हुआ था उससे प्रतिक्रिया शुरू हो गई जो कंटेन्मेंट और उच्च तापमान के कारण और बढ़ गया।एक्जोथिर्मिक प्रतिक्रिया होने के कारण टैंक के अंदर तापमान में वृध्दि हो गई।यह तापमान 200 डिग्री सेल्सियस (392° फारेनहाइट) तक पहुंच गया।इससे टैंक में दबाव बढ़ने के कारण विषैली गैस बहुत बड़ी मात्रा में बाहर आ गई।
गैस बाहर आने के कारण अगले 1 घण्टे के अंदर 30 मीट्रिक टन मिथाइल आइसो सायनेट बाहर वातावरण में घुल गया। इसके कारण भोपाल शहर के लोगों को उल्टियां होने लगी और दम घुटने के कारण लोगों की मृत्यु होने लगी।
स्वास्थ्य पर प्रभाव :
इसके शुरुआती लक्षणों में खाँसी, आँखों में जलन,दम घुटना, सांस की नली में जलन होना,साँस लेने में समस्या,पेट दर्द एवं उलटी होना शामिल था।इन लक्षणों के कारण लोग जाग गए और संयंत्र से दूर भागने लगे।
सुबह तक लाखों लोगों की मृत्यु हो गई।
लोगों की मृत्यु का प्राथमिक कारण दम घुटना, रक्तवाही तंत्र का खराब होना और फेफड़े में संक्रमण था।इस घटना में नवजात बच्चों की मृत्यु अत्यधिक हुई थी।
मध्य प्रदेश सरकार ने गैस रिसाव से होने वाली कुल 3800 मौत की पुष्टि की जबकि मृत्यु इससे कई गुना अधिक हुई थी।
इसके कई दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभाव देखने को मिले जो काफी साल तक रहा था।
जैसे-------- कॉर्निया अस्पष्टता,मोतियाबिंद
श्वसन सम्बन्धी रोग (फेफड़ा,फाइब्रोसिस,टीबी और क्रोनिक ब्रोंकाइटिस)
तंत्रिका प्रणाली,मनोवैज्ञानिक समस्याएँ, नवजात बच्चों की मृत्युदर में वृध्दि,बच्चों में बौध्दिक हानि।
इस घटना का पर्यावरण पर भी व्यापक प्रभाव पड़ा था---
पर्यावरण पर प्रभाव :
संयंत्र के आस-पास का क्षेत्र उपयोग किये हुए खतरनाक रसायनों के लिये डंपिंग क्षेत्र बन गया ।1989 में U. C. C. की प्रयोगशाला द्वारा किये गए परीक्षण से पता चला की भोपाल शहर और इसके आस-पास के क्षेत्र का जल भूमि एवं वायु भी विषाक्त हो गया है।यहाँ तक की जल में रहने वाली मछलियाँ भी विषाक्त हो गई है।कई अन्य अध्ययनों से पता चला की यहाँ की मृदा एवं भूजल भी विषाक्त हो गया है।
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